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Saturday, February 15, 2020

भाग्यवान आम्ही......

*_खरोखरच आपण आणि आपली पिढी ही खूप खूप भाग्यवान आहे, कारण आपणांस आपले सद्गुरू लाभले._*

*_इतकेच नव्हे तर आपल्या श्री सद्गुरू माऊलीने ह्याच वेळेस आणि काळात आपले सव्विसावे अवतारकार्य संपन्न करून आणि आपणा समस्त बंधु-भगिनींस आपल्या जवळ घेऊन, आपले नाम देऊन त्यांच्या प्रत जाण्याचा मार्ग प्रवचन रुपाने समजावून सांगून उपकृत केले._*

_खरोखरच आपण भाग्यवान नाही कां?_ 

*_उजळले भाग्य अमुचे,_*
*_उजळल्या अमुच्या ज्योती_*
*_चरणी घेता सामाऊनी_*
*_मनी गवसले मोती_*

*_मोतीयांचा हार करुनी_*
*_घातला तो गळा_*
*_सद्गुरु प्रसन्न होता_*
*_लाविला नामाचा हो टिळा_*

*_टिळा लाविता नामाचा_*
*_प्रकाश पसरे सारा_*
*_प्रकाशाच्या कल्लोळात_*
*_नजारा दिसे तो न्यारा_*

*_हरवूनी जातो मीपणा त्यात_*
*_उरतो फक्त ओंकार_*
*_ओंकार ध्वनी आळविता_*
*_एकलय होतो अपार_*

*_अनगडाची ही दुनिया सारी_*
*_ज्यास कुणा ती सापडे_*
*_कधीच मागे फिरून न पाही_*
*_लागे मनापासोनी ती आवडे_*

Sunday, January 19, 2020

भगवान हैं........

*_भगवान है !_*
*_सभीमें है_* - तुममें, हममें !
इसीमें, उसीमें ! इन्सानोमें, जानवरोंमें ! जलमें, थलमें ! आकाशमें, पातालमें ! दश दिशाओंमे ! और इस सबसे परें भी!!!

*_वह जगह नहीं, जहां भगवान नहीं._* 

*_वो ना तुमें छोडकर है._* *_ना वो तुमसे अलग हैं_* 
*_वह तुम्हारे अंदरही, तुममें समा हुआ हैं_*

*_सिर्फ हम भुल गये हैं यह बात, जिस वजहसे हम एक दुसरेसे लडते है, झगडते है. इन्सानियत भूल जाते है और अपने ही कोशमें लिप्त रह जाते हैं_*

सबसे बढीया बात तो यह हैं की हम सभी लोग उस भगवान के साथ उनकेही घरमें होते हुएभी मेरी-तेरी करते रहते हैं ! इतना ही नहीं तो एक दुसरेकी पतंग कटवाने के लिये जंग जंग पछाडते हैं, चेष्टा करते हैं और मौका ही धुंडते रहते हैं की कब मैं इसको काट दूं और उसपर मात कर दूं !

क्या यह हमें शोभा देता हैं? कोई कभी ये भी गौरसे सोचता हैं की मेरे सद्गूरु यह कहते थे की यह मेरा परिवार हैं ! क्यों हम यह भूल जाते हैं, हमारे भगवान की यह सोच? सिर्फ और सिर्फ चंद स्वत:हके लाभके लिए ? की हम मानतेही नहीं हमारे सद्गूरु नें दी हुई सीख को की  *"यह मेरा परिवार हैं !"*

कितनी बडी बात कही हैं इस मायावी जगतमें हमारे सद्गूरुजीनें की यह मेरा परिवार हैं, जब की आपके खुदके रिस्तेदारभी कभी यह बात कहनेसे डरते दिखाई देते होंगे ! इस कलियुग में सचमें मानो तो कोई किसी का नहीं हैं ! और ऐसे समय सद्गुरूजींका यह कहना की *तुम सभी मेरा परिवार हो* परिवारसे एक रत्तीभी कम नहीं, बल्की ज्यादाही हो ! और बस ! यह बात सिर्फ कहनेके लिए ही नहीं, तो प्रत्यक्ष आचरणमें लाना, इससे और बडी बात कौनसी हो सकती हैं !

तो हम कब डरेंगे, अपनी गलत सोचसे? अपने गलत व्यवहारसे? अपने गलत रंगो-ढंगोंसें? कंपनी गलत रहन-सहनसें? 

हम कब पुछना छोड देंगे *क्या असलमें भगवान मौजूद हैं?* हम सब कब समजेंगे की हां, सारी सृष्टीका निर्माणकर्ता वो भगवान ही हैं ! 

देखो सृष्टी की ओर ! क्या दिखाई देता हैं? सृष्टी में जगह जगह बिखरी हुई अलगता ! जगह जगह बिखरी हुई वैविध्यता ! रंगों रंगोंका अलगपण ! आसमानकी ऊंचाई ! समुंदरकी गहराई ! अवकाश की निलाई ! सुरजकी गरमाई या फिर रोशनी ! चांदकी शितलता ! हर मनुष्य में पाया जानेवाला अलगपण ! क्या इस सभी की कभी हम छानबीन कर सकते हैं ? जिसका उत्तर नकारार्थी ही होगा ! तो हम कैसे पुछ सकते हैं की *क्या, भगवान हैं ?*

अनगडवाणी